बाड़मेर की सुशीला खोथ, एक साधारण किसान परिवार की बेटी, ने रूढ़ियों को चुनौती देकर इतिहास रच दिया है। भूरटिया गांव की यह युवा खिलाड़ी 13 सितंबर, 2025 से ताइवान में होने वाले एशिया रग्बी कप में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। बकरियां चराते हुए रग्बी की प्रैक्टिस से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक, सुशीला का सफर हौसले और मेहनत की अनूठी मिसाल है।
रूढ़ियों को तोड़ने वाली बेटी
भूरटिया गांव, जहां लड़कियों को घरेलू कामों तक सीमित रखने की परंपरा रही है, वहां सुशीला ने अपने जुनून से नया कीर्तिमान स्थापित किया। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की छात्रा सुशीला के माता-पिता, गणेश कुमार खोथ और बाली देवी, खेती और पशुपालन से परिवार का गुजारा करते हैं। गांव में लड़कियों का खेल के मैदान में उतरना असामान्य था, लेकिन सुशीला का रग्बी के प्रति प्रेम शुरू में सभी के लिए आश्चर्य का विषय था। उनकी दादी किस्तूरी बताती हैं, “वो बकरियां चराने जाती थी, लेकिन कपड़ों में गेंद छिपाकर प्रैक्टिस करती थी। हमारे पास फुटबॉल खरीदने के पैसे नहीं थे, तो उसने कपड़े की गेंद बनाकर खेल शुरू किया।”
आर्थिक और सामाजिक बाधाओं पर जीत
सुशीला का अंडर-18 भारतीय रग्बी टीम में चयन एक बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन आर्थिक तंगी उनके सपनों के आड़े आई। रग्बी किट और यात्रा का खर्च उठाना परिवार के लिए आसान नहीं था। उनके दादाजी ने शुरू में मना किया, लेकिन सुशीला की जिद और वादा—“मैं जीतकर लौटूंगी”—ने उनका मन बदल दिया। गणेश बताते हैं, “हमने बकरियां बेचकर उसकी किट और प्रशिक्षण का इंतजाम किया।” सामाजिक दबाव भी कम नहीं था। पड़ोसियों के ताने, जैसे “तुम्हारी बेटी छोटे कपड़ों में दौड़ रही है,” परिवार के लिए चुनौती थे। लेकिन गणेश ने जवाब दिया, “सुशीला ने साबित किया कि बेटियां भी वही कर सकती हैं, जो परिवार लड़कों से उम्मीद करता है।”
रग्बी में उभरता सितारा
सुशीला ने अप्रैल 2022 में कोच कौशलाराम विराट के मार्गदर्शन में रग्बी शुरू की। स्कूल में दो घंटे की प्रैक्टिस से शुरूआत कर, वह नेशनल स्तर पर पहुंचीं और सुबह-शाम चार घंटे अभ्यास करने लगीं। रोजाना डेढ़ किलोमीटर के चार चक्कर दौड़कर उन्होंने अपनी सहनशक्ति बढ़ाई। उनकी मेहनत ने उन्हें भारतीय अंडर-18 रग्बी टीम में जगह दिलाई।
बड़े सपने और प्रेरणा
सुशीला का सपना है कि वह एशिया और विश्व स्तर पर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतें। वह चाहती हैं कि भूरटिया में राष्ट्रीय स्तर का रग्बी स्टेडियम बने, ताकि और खिलाड़ी तैयार हो सकें। उनके पिता गर्व से कहते हैं, “लोग कहते हैं कि बेटियां बोझ होती हैं, लेकिन सुशीला ने दिखाया कि बेटियां देश का गौरव बढ़ा सकती हैं।”
बदलाव की मशाल
सुशीला की कहानी केवल व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा है। राजस्थान की दो अन्य खिलाड़ियों के साथ वह ताइवान में भारत का परचम लहराएंगी। बकरियां चराते हुए गुपचुप प्रैक्टिस से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक, सुशीला खोथ ने साबित कर दिया कि जुनून और मेहनत से हर बाधा को पार किया जा सकता है।
